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Official website of Shri Jayant Chaudhary - Speech on Combined discussion on the Budget (General) for 2009-2010
Speeches
01 August 2011

Speech on Combined discussion on the Budget (General) for 2009-2010

श्री जयंत चौधरी (मथुरा): महोदय, मैं आपको धन्यवाद देता हूं कि आपने मुझे इस विषय पर बोलने का मौका दिया।

जो बजट पेश हुआ है उस पर माननीय सदस्यों ने जो बातें कही हैं, उनको मैंने सुना है। मुख्य रूप से माननीय सदस्य श्री जोशी जी ने काफी विस्तार से आंकड़े देकर जो बात रखी, उसमें उन्होंने किसान की हालत पर रोशनी डाली है। उन्होंने अर्जुन सेनगुप्ता कमीशन के आंकड़े उन्होंने हाउस में रखे। मैं याद दिलाना चाहूंगा कि उस कमीशन में किसान, किसान परिवार की आर्थिक स्थिति पर प्रकाश डाला गया है। उन्होंने बताया कि औसत रूप से मासिक आमदनी, छोटे वर्ग के किसान परिवार की मात्र 1578 रूपए है और जिसे हम बड़ा किसान कहते हैं, उसकी आमदनी 8,321 रूपए है। यह दर्शाता है कि क्या है गरीबी, क्या है लाचारी और क्या है उनकी पीड़ा। इसलिए यह सवाल मेरे मन में उठता है, बहुत से लोगों के मन में उठ रहा है कि जो बजट पेश किया गया है, उसमें उन लोगों के लिए, उन नौजवान किसानों के लिए क्या किया गया है जो देश की सीमाओं पर देश की अखण्डता को कोई आंच न आने पाए, उसके लिए अपनी कुर्बानी देते हैं, जान देते हैं और जीवनभर, खास तौर से अपनी जवानी खेतों-खलिहानों में देते हैं ताकि इस देश और पूरी दुनिया का वे पेट भर सकें। उन नौजवान किसानों के लिए इस बजट में क्या है? मैं सबसे पहले विरोध जाहिर करूंगा और विनती करता हूं सभी सांसदों से, सरकार से और जो मीडिया के बन्धु बैठे हैं, कि इस बजट के बाद जो विश्लेषण हुआ, उसमें एक टर्म का इस्तेमाल किया गया "आम आदमी"। जब इस आम आदमी शब्द का इस्तेमाल हम सुनते हैं तो हम उससे क्या संदेश देना चाहते हैं? जब सरकार से जुड़ा हुआ कोई व्यक्ति आम आदमी शब्द कहता है, तो वह क्या कहता है? इसका अर्थ यह है कि हम यह मान रहे हैं कि देश में एक आम आदमी है और एक खास आदमी है। देश में एक साधारण वर्ग है, आम वर्ग है। देश का, गांव का गरीब, आप उसे किसी भी पैमाने पर देखें, हमसे कम हैं, तो आम न कहकर, उन्हें गरीब, पिछड़ रहे लोग कहकर हम उनकी बात करें तो उचित रहेगा। जहां तक बजट की बात है, मैं कहूंगा कि ट्रेजरी बेंच के लोगों ने अगर यह कहा कि बजट बेहतरीन है, तो इस तरफ विपक्ष के लोगों ने उसकी आलोचना की है। मैं आलोचना न करके, कुछ सुझाव भी देना चाहूंगा, अगर उन पर वित्त मंत्री जी ध्यान दें, सरकार ध्यान दे तो अच्छा रहेगा। मुख्य रूप से किसान और कृषि के सामने जो समस्या है, कैसे किसान परिवार की आमदनी हम बढ़ा सकते हैं, कैसे उनके जीवन-स्तर में हम उछाल ला सकते हैं । कृषि अनुंसंधान पर सरकार को ज्यादा खर्च करना होगा। नए-नए आविष्कार हों, कम लागत पर, कम पानी के प्रयोग से, जैविक खेती, परम्परागत खेती और नए-नए बीजों के इस्तेमाल से किसान कैसे अपना उत्पाद बढ़ा सकता है, उस दिशा में इस बजट में कहीं कुछ नहीं दिया गया है। फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री के लिए कहीं कोई स्कोप नहीं है। डय़ूटी के माध्यम से, टैक्स के माध्यम से और एक ऐसा वातावरण बनाने में हम हमेशा विफल रहे हैं कि उस क्षेत्र में कोई निवेश कर सके। यही मुख्य समस्या है कि जो आदमी शहर में किसी चीज के लिए जो दाम दे रहा है, उसका मात्र 20 प्रतिशत ही किसान को मिलता है। उससे जुड़ रही जितनी कड़ियां हैं, अगर उनमें आपस में भागीदारी किसान की नहीं बन पाएगी, तो उसके जीवन स्तर में, आर्थिक स्तर में उछाल सम्भव नहीं है।

कुछ वर्ष पहले चर्चा शुरू हुई थी कि हम एक मार्केट स्टेब्लाइजेशन फंड बनाएंगे। गरीब किसान को, छोटे-मध्यम वर्ग के किसान को जो मार्केट के रिस्क को उठा रहा है और जलवायु के परिवर्तन के जोखिम को भी उठा रहा है, उसकी फसल बर्बाद हो जाती है जब कभी सूखा पड़ता है या बाढ़ आती है। आज देखें तो मार्केट के दाम कौन तय कर रहा है, या तो सरकार कर रही है और बहुत बड़ी हद तक कुछ मार्केट प्लेयर, बिचौलिए, ब्लैकमार्केटियर और होर्डर दाम तय करते हैं। इसलिए उसे फसल के दामों के उतार-चढ़ाव से बचाने के लिए मार्केट स्टेब्लाइजेशन फंड की आवश्यकता है। सरकार उसे जल्द ही गम्भीरता से ले, तो अच्छा है।

मैं स्वास्थ्य के बारे में भी कुछ कहना चाहूंगा। स्वास्थ्य पर हम घरेलू उत्पाद का एक प्रतिशत से भी कम खर्च करते आए हैं। शिक्षा के क्षेत्र में अभी भी आप देखें कि बजट में प्राथमिक शिक्षा पर जो ध्यान देना चाहिए था, सर्व शिक्षा अभियान की कोई चर्चा नहीं हुई। उसमें भी हम घरेलू उत्पाद का 3.5 प्रतिशत से भी कम खर्च करते हैं। ये हमारी प्राथमिकताएं होनी चाहिए कि हम भविष्य के लिए कैसे देश को तैयार कर रहे हैं।

एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू की ओर मैं चर्चा करना चाहूंगा। चुनाव के समय भी हमने उस मुद्दे को उठाया था, वह है -कालाधन। देश की सीमाओं के बाहर, कुछ अनुमान कहते हैं कि 40-50 बिलियन यूएस डालर्स, स्विट्जरलैंड के बैंकों में जमा है और वह भारत का पैसा है। उस पर हमने हमेशा चुप्पी साधी है। जी-20 की मीट में जर्मनी और फ्रांस ने जहां पहल की तो भारत सरकार वहां शांत रही। उसके साथ-साथ दूसरा पहलू भी जुड़ा हुआ है कि हमारी घरेलू अर्थव्यवस्था में जो हमारी ब्लैक इकोनॉमी का साइज है, वह कई गुना ज्यादा है। हम खुशी से छाती पर हाथ रखकर कहते हैं कि 10 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा हमारा खर्चा बढ़ गया। लेकिन ब्लैक इकोनॉमी का साइज, कुछ अनुमान कहते हैं कि 24 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा है। मेरे खयाल से 1997 में चिदम्बरम साहब वीडीआईएस नाम की एक योजना लाए थे। उस समय बहुत से लोगों ने उसकी आलोचना की थी। लेकिन आप फैक्ट्स को देखें, तो उस जमाने में 33,000 करोड़ रुपया रेज़ हो गया था। आज रेवेन्यू शार्टफॉल है और बहुत बड़े पैमाने पर आप अगर बजट को देखेंगे तो गवर्नमेंट बॉरोइंग के साथ-साथ हम किस पर निर्भर हैं- हम स्पैक्ट्रम बेचेंगे, हम डिसइंवैस्टमेंट करेंगे। यह तो अर्थव्यवस्था पर आधारित है। अगर थोड़ी सी भी कमा रह गई तो नैया डूब जाएगी। इसलिए मैं अपनी ओर से सुझाव दूंगा कि पुनः इस पर विचार करना चाहिए। उस समय जैसी हम एक और स्कीम अब लाएं, क्योंकि उस समय और आज के समय में बहुत अंतर है। बहुत से लोगों ने काफी पैसा बनाया है। अगर हम ऐसी स्कीम नहीं लाएंगे तो राष्ट्र के उपयोग में वह पैसा नहीं आ पाएगा। इसलिए इस पर गम्भीरता से चिंतन की आवश्यकता है। इसीलिए मैंने सदन में यह बात रखी है।

मैं सदन में एक और विषय पर चर्चा करना चाहूंगा। आज हम ऊर्जा को लेकर चिंतित हैं। हम पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दामों को लेकर चिंतित हैं। फारुख जी यहां मौजूद नहीं हैं, लेकिन उस दिन एक सवाल का जवाब नहीं हो पाया था। इस बजट में सोलर एनर्जी के लिए, सोलर पैनल को सस्ता बनाने के लिए, जिससे ग्राहक को एक्सेस मिल सके, हमने इस दिशा में कुछ नहीं किया। वित्त मंत्री जी चाहते तो इसके लिए एक्साइज डय़ूटी में और कस्टम डय़ूटी में कमी कर सकते थे। अगर आप देखें तो1931 से ब्राजील में इथेनॉल की मिक्सिंग हो रही है। हमारे यहां उसके लिए कोई नीति नहीं है। एक टैनिस बॉल की तरह भारत की सरकार, भारत के ग्राहक पेट्रोल लॉबी और शूगर लॉबी के बीच में कूद रहे हैं। इस सम्बन्ध में सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए। अगर आप पेट्रोल में इथेनॉल की कम से कम दस प्रतिशत मिक्सिंग करेंगे तो उसका लाभ किसान को भी होगा और ग्राहक को भी होगा।

श्री विलास मुत्तेमवार (नागपुर): दस प्रतिशत की पालिसी है और 23.60 रुपए में आप उसे खरीद सकते हैं।

श्री जयंत चौधरी : लेकिन वह पालिसी कहां है, इम्प्लीमेंट ही नहीं हुई है। कोई शूगर इंडस्ट्री का मालिक उसे बेचने को तैयार नहीं है।

श्री जयंत चौधरी :  मैं एक और विषय पर अपनी बात कहना चाहता हूं। जहां क्रैडिट-फ्लो को इप्रूव करने की बात माननीय मंत्री जी ने कही है।

उपाध्यक्ष महोदय : कृपया अपना भाषण अब समाप्त करें।

श्री जयंत चौधरी :   आखिरी दो बातें कह कर मैं अपनी बात समाप्त करुंगा। वर्ष 1990 में रुरल एरियाज में क्रैडिट डिपोजिट रेशो60 प्रतिशत थी और वह घटकर वर्ष 2004-2005 में 49 प्रतिशत रह गय़ी। हम क्रैडिट-फ्लो को एक्सपेंड करने की बात करते हैं लेकिन वर्ष 2008 की क्रैडिट पॉलिसी में आरबीआई ने जो शैडय़ूल्ड कमर्शियल बैंक के सामने एक मानक के रूप में रखा था कि आप 18 प्रतिशत एग्रीकल्चर को दें, 10 प्रतिशत वीकर सोसाइटी के लोगों को दें। उस लक्ष्य को कोई बैंक पूरा नहीं कर पाया होगा। उनको दंडित करने के बजाए, उन्होंने एक प्रावधान कर दिया कि अगर आप लक्ष्य पूरा नहीं कर सकते तो हमने एक रुरल इंफ्रास्ट्रक्चर डैवलेपमेंट फंड बना रखा है, आप उसमें जमा कर दीजिए। यह एक तरह से हमने उन्हें एक रूट दे दिया, रास्ता दे दिया है। हमें चाहिये कि बैंक्स की जितनी ब्रांचेज रूरल एरियाज में खुलें उतना अच्छा हैं और जितना सीधा संपर्क देश के मजदूर-किसान से बैंकों का होगा, उतना अच्छा होगा, क्योंकि उन्हें ही ऋण चाहिए। हमें प्रोत्साहन देना चाहिए कि बैंक सीधा ऋण किसान को दे सके। एक्सपेंडिग क्रैडिट फ्लो पर मेरे ये विचार हैं।

आखिर में मैं कहूंगा कि चाइल्ड बजटिंग का जो कंसैप्ट है, अभी इनीशियल स्टेज पर है और उसके माध्यम से बजट में जानकारी आई, उस पर कई सांसदों ने चर्चा भी की है। 40 प्रतिशत देश की आबादी बच्चों की संख्या में जोड़ी जाती है। उनके लिए बजट में 5 प्रतिशत तक खर्च किया गया है। विषय बहुत गंभीर है। आप 40 प्रतिशत के लिए पांच प्रतिशत खर्च कर रहे हैं और साथ ही हम चाहेंगे कि नौजवानों के लिए भी इसी तरह का एक आंकड़ा आने वाले बजटों में पेश किया जाए तो अच्छा रहेगा। उस पर हम यहां चर्चा कर पाएंगे और उससे सरकार पर एक दबाव बनेगा और जनता की अदालत में सरकार की तरफ से स्प्ष्टीकरण होगा कि कितना खर्च हम नौजवानों के लिए कर रहे हैं।