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श्री जयंत चौधरी : अध्यक्ष महोदया, कल सदन में जो हुआ, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सदन का हरेक सदस्य और हम सबको यहां अगर किसी ने चुनकर भेजा है तो गांवों में रह रहे किसान, नौजवान गरीब मजदूरों ने भेजा है। हमारी उनके प्रति एक जिम्मेदारी बनती है। मैं सदन को अवगत कराना चाहता हूं कि क्या कारण थे, मैं नहीं जानता। प्रदेश सरकार नहीं चाहती थी कि मैं वहां जाऊं। मैं एक जनप्रतिनिधि हूं। प्रदेश सरकार नहीं चाहती थी कि मैं वहां पहुंचू। शायद वह नहीं चाहती थी कि हमारे दल के या विभिन्न दलों के लोग जो कल 15अगस्त को सुबह वहां पहुंचे हैं, प्रदेश सरकार नहीं चाहती थी कि हम वहां जाएं और लोगों की बात सुन पाएं।...(व्यवधान) मेरे घर पर डी.एम. की ओर से एक फैक्स आय़ा कि आपका अलीगढ़ में प्रवेश वर्जित है क्योंकि आप किसानों को प्रोत्साहित करेंगे। कैसे टैम्पो में छुप-छुपकर 50 कि.मी. गाड़ी बदल-बदलकर मैं वहां पहुंचा हूं और वहां जो मैंने स्थिति देखी है, जो तनावपूर्ण वहां माहौल है। सभी सदस्यों ने अपनी-अपनी बातें रखी हैं। मैं सहमत हूं, जो देवेगौडा जी कह रहे थे, उनकी बात से भी मैं सहमत हूं। हम सबकी करोड़ों बहनें रहती हैं, किसान की बेटियां रहती हैं।
वे हमसे अपेक्षा रखती हैं। अगर हमें रक्षा बंधन का त्यौहार मनाना है तो हम उस दिन भूमि अधिग्रहण पर क्यों नहीं चर्चा करें। यह बहुत विशाल चर्चा का विषय है। मैं आपको कुछ बातें कहना चाहता हूं कि सरकार भी एक कानून लाना चाहती है। महामहिम राष्ट्रपति जी ने अभिभाषण में सरकार की प्रतिबद्धता को व्यक्त किया है। इसमें देरी नहीं होनी चाहिए। सरकार जो भी कानून लाए, उसमें पब्लिक परपज़ यानी सार्वजनिक इस्तेमाल को विस्तार और विकसित रूप से लोगों के बीच में रखा जाए। फॉर मोर वन रेसिंग ट्रैक, बड़ी इमारतें सार्वजनिक इस्तेमाल नहीं है। पावर प्लांट, रक्षा मंत्रालय या सचिवालय के लिए जमीन चाहिए तो देश का किसान जमीन देने के लिए तैयार है। वह अपनी जमीन लाखों बार देगा। लेकिन वहां हो क्या रहा है? एक बिचौलिए की तरह, एक रियल एस्टेट दलाल की तरह विभिन्न सरकारें आती हैं, पूंजीपति जमीन चाहता है और उन्हें जमीन खरीदकर दे देती हैं। इसमें किसान की सहमति नहीं बन पाती है, यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है।
कल प्रदेश सरकार के नुमांइदे कह रहे थे कि वहां पुलिस ने फायरिंग नहीं की और आज वे कह रहे हैं कि सहमति से होगा। मुख्यमंत्री मायावती जी ने पिछले वर्ष कहा था और मैंने खुद सुना था। पिछली बार जब इस तरह की घटना हुई थी तब भी उन्होंने कहा था कि हम बिना किसान की सहमति के एक इंच भी जमीन एक्वायर नहीं करेंगे। मैं इसके बावजूद बताना चाहता हूं कि वहां के अधिकारी दबाव डालते हैं, वे पूंजीपति, जो जमीन लेना चाहते हैं, वे दबाव डालते हैं। एक किसान जिसके पास दो बीघा भी जमीन नहीं है, वे इस भार और दबाव को सह नहीं सकता, टूट जाता है और करार कर देता है। हम उसकी पीड़ा और मजबूरी को कब तक नहीं समझेंगे? यह बहुत महत्वपूर्ण विषय है। इस सदन में राम बाबू कटीरिया के बारे में बात हुई है। मैं बताना चाहता हूं और आप टेलीविजन खोल कर देख सकते हैं। उनके भाई का अभी भी बयान आ रहा है, वे अभी भी अस्पताल में हैं। उनके भाई का बयान आ रहा है कि हमें डर है कि शायद उन्होंने किसी दबाव में आकर इस बात को कहा है। वहां आदरणीय राजनाथ जी गए थे, श्री शिवपाल जी गए थे, सब पार्टी के लोग वहां पहुंचे थे। वहां हम सबने जाकर कहा कि जो पंचायत का फैसला होगा, जो किसान के भाव होंगे, हम उनका आदर करेंगे। लेकिन बंद कमरे में फैसला क्यों किया गया?
सभी पार्टी के लोग यहां मौजूद हैं, मैं अपील करता हूं कि इस सदन के माध्यम से हम सब संकल्प करें कि हम भूमि अधिग्रहण के मसले पर चर्चा करें। हम राष्ट्रीय स्तर पर भूमि अधिग्रहण के मामले पर सहमति बनाएं। केंद्र सरकार को नया कानून पेश करना चाहिए। मैं प्रदेश सरकार की आलोचना नहीं कर रहा हूं, जो हुआ है उसे दुनिया ने देखा है कि क्या हो चुका है। यह घटना जिन अधिकारियों के रहते हुए हुई, आप उनके खिलाफ क्या कार्रवाई करना चाहते हैं, इसका जवाब जनता के बीच में जाकर देना होगा।